सामान्य जानकारी

नैदानिक प्रतिरक्षा विज्ञान विभाग
इम्युन सिस्टम के प्रतिरक्षा संबंधी विकारों, ऑटोइम्यून बीमारियों, एलर्जी, इम्युनोडेफिशिएंसी और अन्य विकारों से भारतीय जनसंख्या का लगभग 10 से 20% आबादी प्रभावित है। मुख्य रूप से ज्यादातर युवा व्यक्तियों को प्रभावित करने वाले ये चिरकारी विकारें वर्तमान में असाध्य है और चिरकारी दुर्बलता, आजीवन बीमारी और असामयिक मृत्यु के लिए उत्तरदायी होता है। डाइअबीटिज़ और हाइपर्टेन्शन जैसे अन्य चिरकारी विकारों की तुलना में, इनमे से कई विकारों का इलाज बेहद महंगा (कम से कम 10-15 गुना अधिक) है, जो एक साधारण भारतीय परिवार की पहुंच से बाहर है। यह शहरी और ग्रामीण भारत दोनों में उनके प्रबंधन के लिए उचित सुविधाओं की कमी के साथ जुडा हुआ है, ये विकार परिवार पर अपंगता/विकलांगता, भावनात्मक और आर्थिक बोझ डालने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और परिवार को गरीबी में धकेलने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक हैं। युवा व्यक्तियों में चिरकारी अक्षमता की बीमारी और उनके इलाज और पुनर्वास की उच्च लागत के कारण मानव संसाधन की हानि के रूप में समाज की लागत भी अधिक है। भविष्य में प्रतिरक्षा विकारों की महामारी होने से रोकने और नियंत्रित करने के लिए साथ ही इन विकारों के प्रबंधन के लिए केंद्रों को स्थापित करने की बहुत बड़ी आवश्यकता है।
नैदानिक प्रतिरक्षा विज्ञान विभाग दक्षिण भारत में एकमात्र केंद्र सरकार का केंद्र है जो व्यापक रोगी देखभाल सेवाएं प्रदान करता है, स्‍यूपर स्‍पेशिएलिटी प्रशिक्षण प्रदान करता है और जुलाई 2009 में विभाग की स्थापना समय से इम्युन मीडिऐट विकार के क्षेत्र में रोगी केंद्रित अनुसंधान कार्य करता है। हमारा लक्ष्य रोग होने के कारणों को समझना है और बुनियादी, नैदानिक और ट्रांस्लेशनल अनुसंधान को बढ़ावा देकर श्रेष्ठ रोगी स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए इन विकारों के उपचार की विफलता और पुनःबीमार पडने के कारण; इम्यूनोलॉजी में शैक्षिक करिअर के लिए चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देना; और प्रतिरक्षा विज्ञान रोगों से पीड़ित बच्चों और वयस्कों को अनुकंपा, अत्याधुनिक नैदानिक और चिकित्सीय देखभाल प्रदान करना है।
विभाग सप्ताह के सभी कार्य दिवसों में बहिरंग रोगी सेवाएं (2 सामान्य ओ.पी.डी. और 5 विशेष क्लीनिक) चलाता है। अंतरंग रोगी वार्ड में 16 शय्या और एक डे केयर सुविधा उपलब्ध है, । हर महीने 5,000 से अधिक मरीज विभाग की विभिन्न रोगी देखभाल सेवाओं का लाभ उठाते हैं। सेल-बेसड थेरापी के साथ दुर्दम्य प्रतिरक्षा रोगों के उपचार के लिए इम्यूनोथारेपी यूनिट को मान्यताप्राप्त हो गया है और मरम्मत के बाद फिर से चालू होने की संभावना है। नैदानिक देखभाल के अलावा, विभाग संस्थान के सभी नैदानिक विभागों द्वारा उपयोग की जाने वाली इम्यूनोडायग्नोस्टिक प्रयोगशाला सेवाएं (इम्यूनोफ्लोरेसेंस, एलिसा, नेफेलोमेट्री, फ्लोसाइटोमेट्री और पी.सी.आर.) प्रदान करता है। इसमें संस्थान प्रत्यारोपण कार्यक्रम के लिए एच.एल.ए. टाइपिंग शामिल है।
विभाग डी.एम. (नैदानिक प्रतिरक्षा विज्ञान) और पी.एचडी. (नैदानिक प्रतिरक्षा विज्ञान) में एक सक्रिय शैक्षणिक कार्यक्रम आयोजित करता है, जिसमें 2009 से प्रति वर्ष 2 डी.एम. प्रशिक्षुओं और पी.एचडी. शोधार्थियों की प्रवेश क्षमता है। विभाग को पेरिस-7, फ्रांस विश्वविद्यालय के साथ भारत में प्रथम संयुक्त/ कुटुटेल पीएचडी कार्यक्रम का अनूठा गौरव प्राप्त है।
अपनी नैदानिक और शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा, विभाग के पास पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय निधिकरण के साथ अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाएं हैं। विभाग में संयुक्त पीएचडी के लिए कई अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग (फ्रांस, जर्मनी, यू.एस.ए.) सहयोग शामिल है। भारत सरकार के डी.एस.टी.-एफ.आई.एस.टी. कार्यक्रम के तहत स्थापित विभाग की नैदानिक प्रतिरक्षा विज्ञान प्रयोगशाला प्रतिरक्षा विज्ञान में बुनियादी और ट्रांस्लेशनल अनुसंधान में सक्रिय रूप से लगा हुआ है। विभाग ऑटोइम्यून रूमेटिक विकारों, प्रमुख रूप से इन रोगों के इम्यूनोजिनेटिक्स, फार्माकोजिनोमिक्स और इम्यूनोपैथोजेनेसिस के क्षेत्र में अपने शोध और प्रतिष्ठित, उच्च प्रभाव वाले अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नलस में बड़ी संख्या में प्रकाशनों के साथ उनके प्रबंधन के लिए जाना जाता है। विभाग का अनुसंधान फोकस ऑटोइम्यून रूमेटिक विकारों के विकृति विज्ञान को समझने में सहयोगात्मक, बहुकेंद्रित अंतःविषय अनुसंधान, इन विकारों से संबंधित चिकित्सा और प्रतिकूल परिणाम और स्वास्थ्य देखभाल के लिए विशेष प्रतिक्रियाओं के कारणों पर है।

Last Updated :23-Aug-2022