सामान्य जानकारी

यह 55 वर्ष पुराना विभाग, सन 1966 में अपनी स्थापना से ही, नवजात शिशुओं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी आयु वर्ग के रोगियों के लिए हृदय, वक्ष व वाहिका रोगों के व्यापक विस्तार का प्रबंधन के लिए सेवा प्रदान करने वाली पूर्ण हृदय, वक्ष व वाहिका केन्द्र के रूप में विकसीत हुआ है। वैकल्पिक शल्य चिकित्साओं के अलावा, चौबीसों घंटें चेस्ट ट्रॉमा, व़ैस्क्यूल ट्रॉमा के केसस और नॉन ट्रॉमैटिक आपातकालीन के लिए भी आपातकालीन सेवाएं प्रदान की जाती है। वर्ष 1992 में, हृदय, वक्ष व वाहिका शल्यचिकित्सा के क्षेत्र में पोस्टडॉक्टरल पाठ्यक्रम (एम.सीएच.) प्रारंभ हुई थी और वर्तमान में अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ सामान्य हृदय, वक्ष व वाहिका संचालन में व्यापक स्पेक्ट्रम को कवर करते हुए व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करता है और चेस्ट ट्रॉमा और वक्ष ट्रॉमा के प्रबंधन, ओ.पी.डी. में पूर्व संचालन परामर्श और रोगियों के पोस्ट ऑपरेटिव प्रबंधन में भी व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करता है। वर्ष 2010 में, बी.एससी. पफ़्यूश्जन प्रौद्योगिकी – एक संबद्ध चिकित्सा विज्ञान पाठ्यक्रम प्रारंभ हुआ था। उपरोक्त सभी पाठ्यक्रम के लिए भर्ती प्रत्येक वर्ष में आयोजित प्रवेश परीक्षा के माध्यम से की जाती है और पाठ्यक्रम के अन्त में बोर्ड द्वारा आयोजित निकासी परीक्षा में उत्तीर्ण करने के बाद उम्मीदवारों को संबंधित विषयों में डिग्री प्रदान किया जाता है। विभाग की गतिविधियों में अनुसंधान और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में इसका आवधिक प्रकाशन भी शामिल है।
डॉ. श्रीवत्स के.एस. प्रसाद ने यूनाइटेड किन्गडम में पीडिऐट्रिक कार्डिएक शल्यचिकित्सा में एक वर्षीय फैलोशिप प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद विभाग में कार्यभार ग्रहण किया है। विभाग सन् 2020 में हृदय फेफड़े का प्रतिरोपण शुरू करने के लिए उत्सुक था, लेकिन कोविड महामारी के कारण लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका और इसे वर्ष 2021 में पूरा किया जाएगा।

Last Updated :30-Aug-2022