इतिहास और मील का पत्थर
जवाहरलाल स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को मुल स्रोत है, सन् 1823 में फ्रांसीसी सरकार द्वारा स्थापित ‘’एकोल दे मेदिसीन दे पोंडिशेरी’’।
कॉलेज, उच्च न्यायालय के रूप मेदित भवन में अवस्थित था, जहां आजकल का विधान सभा स्थित है।
सन् 1956 मे, फ्रांस के राजदूत ने हमारे ‘’नया’’ मेडिकल कॉलेज का प्रतिष्ठापन किया, जो पुदुच्चेरी टाउन के सीमांत में अवस्थित था।
पांडिच्चेरी के भारत सरकार को वस्तुत: अंतरण में परिणाम स्वरूप, कॉलेज, जिसका नाम स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (डी.जी.एच.एस.) के अधीन क्षेत्रीय स्नातकोत्तर केन्द्र के रूप में उन्नयन करने के पहले कुछ समय के लिए धन्वंतरि मेडिकल कॉलेज के नाम से जाना जाता था, जिसे भारत सरकार ने ‘जिपमेर’ के नाम पर पुन: नामकरण दिया।
भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने दिनांक 13 जुलाई 1964 को चिकित्सालय एवं बहिरंग रोगी भवनों का उद्घाटन किया।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली एवं स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान शिक्षा व अनुसंधान संस्थान, चण्डीगढ़ की तरह, जुलाई 2008 में, एक संसदीय अधिनियम द्वारा जिपमेर को एक राष्ट्रीय महत्व संस्थान की प्रतिष्ठा दिलवाई गई। वित्त-परिव्यय की बढ़ोत्तरी, कर्मचारी, छात्र एवं सेवाओं में वृद्धि के साथ, संस्था का सर्वतोमुखी विकास रूप में परिवर्तित की गई हैं।
दिनांक 15 अक्तूबर 2008 को, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ.पी.जे. अब्दुल कलाम ने, डॉ. अन्बुमणी रामदास के साथ, स्यूपर स्पेशिऐलिटी ब्लॉक, ट्रॉमा देखभाल केन्द्र और प्रेक्षागृह का उद्घाटन किया और जिपमेर को एक राष्ट्रीय महत्व संस्थान के रूप में राष्ट्र को समर्पित किया।
जिपमेर के वर्तमान विस्तार (फेस -।।) ने जिपमेर महिला एवं बाल चिकित्सा अस्पताल, जिपमेर शैक्षिक केन्द्र, स्नातकपूर्व एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों का नया छात्रवास कांप्लेक्स और व्यायामशाला, भोजन हाल व अन्य सुविधओं से सम्मिलित एक सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्र आदि को देखा है।